तस्य—ध्रुव से; प्रीतेन—परम प्रसन्न होकर; मनसा—मन से; ताम्—उस स्मृति को; दत्त्वा—देकर; ऐडविड:—इडविडा का पुत्र, कुबेर; तत:—तत्पश्चात्; पश्यत:—जब ध्रुव देख रहे थे; अन्तर्दधे—अन्तर्धान हो गया; स:—वह (ध्रुव); अपि—भी; स्व पुरम्—अपनी पुरी को; प्रत्यपद्यत—वापस चला गया ।.
अनुवाद
इडविडा के पुत्र कुबेर अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक ध्रुव महाराज को मनचाहा वरदान दिया। तत्पश्चात् वे ध्रुव को देखते-देखते से अन्तर्धान हो गये और ध्रुव महाराज अपनी राजधानी वापस चले गये।
तात्पर्य
इडविडा का पुत्र कुबेर महाराज ध्रुव पर इसलिए अधिक प्रसन्न था क्योंकि उन्होंने भोग के योग्य कोई भौतिक वस्तु नहीं माँगी। कुबेर देवताओं में से एक हैं; अत: कोई यह तर्क कर सकता है कि ध्रुव महाराज ने किसी देवता से क्यों वरदान लिया? इसका उत्तर यही है कि वैष्णव के लिए देवता से ऐसा वर प्राप्त करने में कोई बन्धन नहीं जो कृष्ण चेतना को बढ़ाने वाला हो। उदाहरणार्थ, गोपियों ने देवी, कात्यायनी की पूजा की थी, किन्तु उन्होंने उनसे एकमात्र यही आशीर्वाद माँगा कि पति रूप में उन्हें कृष्ण प्राप्त हों। कोई भी वैष्णव देवताओं से अथवा भगवान् से किसी प्रकार का वर माँगने का इच्छुक नहीं रहता। भागवत में कहा गया है कि परम पुरुष द्वारा मुक्ति प्रदान की जा सकती है, किन्तु यदि भगवान् द्वारा मुक्ति भी प्रदान की जाये तो भक्त उसे अस्वीकार कर देता है। ध्रुव महाराज ने कुबेर से मुक्ति नहीं माँगी जिसमें वैकुण्ठलोक जाना होता है; उन्होंने केवल इतनी ही याचना की कि वे वैकुण्ठ या इस लोक में चाहे जहाँ भी रहें भगवान् का सदैव स्मरण करते रहें। वैष्णव सदा सबों का सम्मान करता है, अत: जब कुबेर ने उन्हें आशीर्वाद दिया तो उन्होंने उसे अस्वीकार नहीं किया। किन्तु वे ऐसी वस्तु चाहते थे, जो कृष्णचेतना को अग्रसर करने में सहायक हो।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.