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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.13.1 
सूत उवाच
निशम्य कौषारविणोपवर्णितंध्रुवस्य वैकुण्ठपदाधिरोहणम् ।
प्ररूढभावो भगवत्यधोक्षजेप्रष्टुं पुनस्तं विदुर: प्रचक्रमे ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; निशम्य—सुनकर; कौषारविणा—मैत्रेय से; उपवर्णितम्—वर्णित; ध्रुवस्य—ध्रुव का; वैकुण्ठ-पद—विष्णु-धाम को; अधिरोहणम्—आरूढ़ होना; प्ररूढ—बढ़ा हुआ; भाव:—भक्तिभाव; भगवति—भगवान् के प्रति; अधोक्षजे—जो प्रत्यक्ष अनुभव से परे है; प्रष्टुम्—पूछने के लिए; पुन:—फिर; तम्—मैत्रेय को; विदुर:—विदुर ने; प्रचक्रमे—प्रयास किया ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने शौनक इत्यादि समस्त ऋषियों से आगे कहा : मैत्रेय ऋषि द्वारा ध्रुव महाराज के विष्णुधाम में आरोहण का वर्णन किये जाने पर विदुर में भक्तिभाव का अत्यधिक संचार हो उठा और उन्होंने मैत्रेय से इस प्रकार पूछा।
 
तात्पर्य
 जैसाकि विदुर तथा मैत्रेय की वार्ता से स्पष्ट है, भगवान् तथा उनके भक्तों के कार्यकलाप इतने मोहक होते हैं कि न तो वर्णन करनेवाला भक्त कहते अघाता है और न सुननेवाला भक्त प्रश्नोत्तरों से थकता है। दिव्य विषयवस्तु ऐसी रोचक होती है कि न तो कोई सुनते और न ही कहते थकान का अनुभव करता है। किन्तु जो भक्त नहीं हैं, वे सोच सकते हैं कि लोग केवल भगवान् की वार्ता में इतना समय कैसे लगा सकते हैं? किन्तु भक्त कभी भी भगवान् या उनके भक्तों के विषय में सुनते तथा कहते संतुष्ट होते या अघाते नहीं। वे जितना ही अधिक सुनते और कहते हैं उतना ही अधिक सुनने के लिए उत्साहित होते हैं। हरे कृष्ण मंत्र का कीर्तन केवल तीन शब्दों का बारम्बार उच्चारण है। ये शब्द हैं हरे, कृष्ण तथा राम, किन्तु भक्त लोग इस मंत्र का चौबीसों घंटे कीर्तन करते थकते नहीं।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥