फलत: मंत्रियों तथा कुल के समस्त गुरुजनों ने समझा कि उत्कल बुद्धिहीन और सचमुच ही पागल है। इस प्रकार उसका छोटा भाई, जिसका नाम वत्सर था और जो भ्रमि का पुत्र था, राजसिंहासन पर बिठा दिया गया और वह सारे संसार का राजा हो गया।
तात्पर्य
ऐसा लगता है कि तब राजतंत्र तो था, किन्तु नितांत निरंकुशता न थी। परिवार के गुरुजन तथा मंत्री परिवर्तन ला सकते थे और सिंहासन के लिए उचित व्यक्ति चुन सकते थे, यद्यपि राज परिवार का ही कोई व्यक्ति सिंहासन का अधिकारी बन सकता था। आज भी जहाँ कहीं भी राजतंत्र है, कभी-कभी मंत्री तथा परिवार के गुरुजन मिलकर राज-परिवार के किसी सदस्य की बजाय किसी दूसरे सदस्य को चुनकर सिंहासन पर बिठा देते हैं।
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