श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  4.13.11 
मत्वा तं जडमुन्मत्तं कुलवृद्धा: समन्त्रिण: ।
वत्सरं भूपतिं चक्रुर्यवीयांसं भ्रमे: सुतम् ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
मत्वा—मान कर; तम्—उत्कल को; जडम्—बुद्धिहीन; उन्मत्तम्—पागल; कुल-वृद्धा:—कुल के गुरुजन; समन्त्रिण:— मंत्रियों समेत; वत्सरम्—वत्सर को; भू-पतिम्—संसार का शासक; चक्रु:—बनाया; यवीयांसम्—छोटा; भ्रमे:—भ्रमि का; सुतम्—पुत्र ।.
 
अनुवाद
 
 फलत: मंत्रियों तथा कुल के समस्त गुरुजनों ने समझा कि उत्कल बुद्धिहीन और सचमुच ही पागल है। इस प्रकार उसका छोटा भाई, जिसका नाम वत्सर था और जो भ्रमि का पुत्र था, राजसिंहासन पर बिठा दिया गया और वह सारे संसार का राजा हो गया।
 
तात्पर्य
 ऐसा लगता है कि तब राजतंत्र तो था, किन्तु नितांत निरंकुशता न थी। परिवार के गुरुजन तथा मंत्री परिवर्तन ला सकते थे और सिंहासन के लिए उचित व्यक्ति चुन सकते थे, यद्यपि राज परिवार का ही कोई व्यक्ति सिंहासन का अधिकारी बन सकता था। आज भी जहाँ कहीं भी राजतंत्र है, कभी-कभी मंत्री तथा परिवार के गुरुजन मिलकर राज-परिवार के किसी सदस्य की बजाय किसी दूसरे सदस्य को चुनकर सिंहासन पर बिठा देते हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥