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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  4.13.12 
स्वर्वीथिर्वत्सरस्येष्टा भार्यासूत षडात्मजान् ।
पुष्पार्णं तिग्मकेतुं च इषमूर्जं वसुं जयम् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
स्वर्वीथि:—स्वर्वीथि; वत्सरस्य—राजा वत्सर की; इष्टा—अत्यन्त प्रिय; भार्या—पत्नी ने; असूत—जन्म दिया; षट्—छह; आत्मजान्—पुत्रों को; पुष्पार्णम्—पुष्पार्ण; तिग्मकेतुम्—तिग्मकेतु; —भी; इषम्—इष; ऊर्जम्—ऊर्ज; वसुम्—वसु; जयम्—जय ।.
 
अनुवाद
 
 राजा वत्सर की अत्यन्त प्रिय पत्नी स्वर्वीथि थी और उस ने छह पुत्रों को जन्म दिया जिनके नाम थे पुष्पार्ण, तिग्मकेतु, इष, ऊर्ज, वसु तथा जय।
 
तात्पर्य
 वत्सर की पत्नी को यहाँ इष्टा अर्थात् पूज्य बताया गया है। दूसरे शब्दों में, ऐसा प्रतीत होता है कि वत्सर की पत्नी में समस्त उत्तम गुण थे—उदाहरणार्थ, वह सदैव आज्ञाकारिणी तथा पति की अत्यन्त प्रिया थी। गृहस्थी के कार्यों को सँभालने में वह दक्ष थी। यदि पति तथा पत्नी दोनों उत्तमगुणों से युक्त हों और शान्तिपूर्वक रहें, तो उनकी सन्तानें उत्तम होती हैं और सारा परिवार सुखी तथा सम्पन्न रहता है।
 
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