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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  4.13.18 
सुनीथाङ्गस्य या पत्नी सुषुवे वेनमुल्बणम् ।
यद्दौ:शील्यात्स राजर्षिर्निर्विण्णो निरगात्पुरात् ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
सुनीथा—सुनीथा; अङ्गस्य—अंग की; या—जो; पत्नी—पत्नी; सुषुवे—जन्म दिया; वेनम्—वेन; उल्बणम्—अत्यन्त कुटिल; यत्—जिसका; दौ:शील्यात्—बुरा आचरण होने से; स:—वह; राज-ऋषि:—राजर्षि अंग; निर्विण्ण:—अत्यन्त निराश; निरगात्—बाहर चला गया; पुरात्—घर से ।.
 
अनुवाद
 
 अंग की पत्नी सुनीथा से वेन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो अत्यन्त कुटिल था। साधु स्वभाव का राजा अंग वेन के दुराचरण से अत्यन्त निराश था, फलत: उसने घर तथा राजपाट छोड़ दिया और जंगल चला गया।
 
 
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