श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  4.13.19-20 
यमङ्ग शेपु: कुपिता वाग्वज्रा मुनय: किल ।
गतासोस्तस्य भूयस्ते ममन्थुर्दक्षिणं करम् ॥ १९ ॥
अराजके तदा लोके दस्युभि: पीडिता: प्रजा: ।
जातो नारायणांशेन पृथुराद्य: क्षितीश्वर: ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
यम्—जिसको (वेन को); अङ्ग—हे विदुर; शेपु:—उन्होंने शाप दिया; कुपिता:—क्रुद्ध; वाक्-वज्रा:—जिनके शब्द वज्र के समान कठोर हैं; मुनय:—बड़े-बड़े मुनि; किल—निस्सन्देह; गत-असो:—मरने के बाद; तस्य—उसका; भूय:—साथ ही; ते— वे; ममन्थु:—मथा; दक्षिणम्—दाहिना; करम्—हाथ; अराजके—बिना राजा के; तदा—तब; लोके—संसार में; दस्युभि:— बदमाशों तथा चोरों के द्वारा; पीडिता:—दुखी; प्रजा:—सभी नागरिक; जात:—उत्पन्न हुआ; नारायण—भगवान् के; अंशेन— आंशिक प्रतिरूप द्वारा; पृथु:—पुथु; आद्य:—मूल; क्षिति-ईश्वर:—संसार का शासक ।.
 
अनुवाद
 
 हे विदुर, जब ऋषिगण शाप देते हैं, तो उनके शब्द वज्र के समान कठोर होते हैं। अत: जब उन्होंने क्रोधवश वेन को शाप दे दिया तो वह मर गया। उसकी मृत्यु के बाद कोई राजा न होने से चोर-उचक्के पनपने लगे, राज्य में अनियमितता फैल गयी और समस्त नागरिकों को भारी कष्ट झेलना पड़ा। यह देखकर ऋषियों ने वेन की दाहिनी भुजा को दण्ड मथनी बना लिया और उनके मथने के कारण भगवान् विष्णु अपने अंश रूप में संसार के आदि सम्राट राजा पृथु के रूप में अवतरित हुए।
 
तात्पर्य
 राजतंत्र प्रजातंत्र से उत्तम होता है क्योंकि यदि राजतंत्र प्रबल हो तो राज्य के भीतर विधि-विधानों का सुचारु रूप से पालन होता है। सौ वर्ष पूर्व भी भारत की रियासत कश्मीर का राजा इतना प्रबल था कि यदि उसके राज्य में कोई चोर पकड़ा जाता और उसके समक्ष लाया जाता तो वह तुरन्त चोर के हाथ कटवा देता था। इस कठोर दण्ड के कारण उसके राज्य में एक भी चोरी नहीं होती थी। यहाँ तक कि यदि कोई राह में कुछ छोड़ देता तो उसे कोई छूता तक न था। नियम यह था कि जो वस्तु का मालिक हो, वही उसे ले जाये, अन्य कोई उसे छुए तक नहीं। तथाकथित प्रजातंत्र में जहाँ कहीं चोरी होती है, पुलिस वहाँ पहुँच कर मामले को दर्ज करती है, किन्तु सामान्यत: चोर कभी नहीं पकड़ा जाता और न उसे दण्ड दिया जाता है। असमर्थ सरकार होने से इस समय पूरे संसार में चोरों, उचक्कों तथा ठगों की भरमार है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥