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श्लोक 4.13.2  |
विदुर उवाच
के ते प्रचेतसो नाम कस्यापत्यानि सुव्रत ।
कस्यान्ववाये प्रख्याता: कुत्र वा सत्रमासत ॥ २ ॥ |
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शब्दार्थ |
विदुर: उवाच—विदुर ने पूछा; के—कौन थे; ते—वे; प्रचेतस:—प्रचेतागण; नाम—नाम के; कस्य—किसके; अपत्यानि— पुत्र; सु-व्रत—हे शुभ व्रतधारी मैत्रेय; कस्य—किसके; अन्ववाये—कुल में; प्रख्याता:—प्रसिद्ध; कुत्र—कहाँ; वा—भी; सत्रम्—यज्ञ; आसत—सम्पन्न हुआ ।. |
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अनुवाद |
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विदुर ने मैत्रेय से पूछा : हे महान् भक्त, प्रचेतागण कौन थे? वे किस कुल के थे? वे किसके पुत्र थे और उन्होंने कहाँ पर महान् यज्ञ सम्पन्न किये? |
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तात्पर्य |
पिछले अध्याय में प्रचेताओं के यज्ञस्थल पर नारद द्वारा तीन श्लोक गाये जाने से विदुर को और आगे प्रश्न पूछने का प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। |
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