प्रजा का कर्तव्य है कि वह राजा का अपमान न करे, चाहे यदाकदा वह अत्यन्त पापपूर्ण कृत्य करता हुआ ही क्यों न प्रतीत हो। अपने तेज के कारण राजा अन्य शासनकर्ता प्रमुखों से सदैव अधिक प्रभावशाली होता है।
तात्पर्य
वैदिक सभ्यता के अनुसार राजा भगवान् का प्रतिनिधि होता है। वह नरनारायण कहलाता है, जो इस बात का सूचक है कि नारायण अर्थात् भगवान् राजा के रूप में समाज में प्रकट होते हैं। यह शिष्टाचार है कि प्रजा न तो ब्राह्मण का, न क्षत्रिय राजा का कभी अपमान करती है। भले ही राजा पापी प्रतीत होता हो, किन्तु प्रजा उसका अपमान नहीं करती। किन्तु वेन के विषय में ऐसा प्रतीत होता है कि उस को नरदेवताओं ने शाप दिया था जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि उसके पापकर्म अत्यन्त भयावह थे।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.