मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने उत्तर दिया; अङ्ग:—राजा अंग ने; अश्वमेधम्—अश्वमेध यज्ञ; राज-ऋषि:—साधु राजा; आजहार— सम्पन्न किया; महा-क्रतुम्—महान् यज्ञ; न—नहीं; आजग्मु:—आये; देवता:—देवता; तस्मिन्—उस यज्ञ में; आहूता:—बुलाये गये; ब्रह्म-वादिभि:—यज्ञ करने में ब्राह्मणों द्वारा ।.
अनुवाद
श्री मैत्रेय ने उत्तर दिया : हे विदुर, एक बार राजा अंग ने अश्वमेध नामक महान् यज्ञ सम्पन्न करने की योजना बनाई। वहाँ पर उपस्थित समस्त सुयोग्य ब्राह्मण जानते थे कि देवताओं का आवाहन कैसे किया जाता है, किन्तु उनके प्रयास के बावजूद भी किसी देवता ने न तो भाग लिया और न ही कोई उस यज्ञ में प्रकट हुआ।
तात्पर्य
वैदिक यज्ञ सामान्य कृत्य नहीं होता। ऐसे यज्ञों में देवता भाग लेते थे और इन कृत्यों में जिन पशुओं की बलि दी जाती थी उनको नवीन जीवन मिलता था। इस कलिकाल में कोई शक्तिशाली ब्राह्मण नहीं है, जो देवताओं का आवाहन कर सके, अथवा पशुओं को नया जीवनदान दे सके। प्राचीन काल में वैदिक मंत्रों में पारंगत ब्राह्मण मंत्रों की शक्ति दिखा सकते थे, किन्तु इस युग में ऐसे ब्राह्मणों के अभाव से इस प्रकार के समस्त यज्ञ वर्जित हैं। जिस यज्ञ में घोड़ों की बलि दी जाती थी वह अश्वमेध कहलाता था। कभी-कभी गायों की भी बलि (गवालम्भ), खाने के लिए नहीं, वरन् मंत्रों की शक्ति द्वारा नया जीवन प्रदान करने के लिए, दी जाती थी। अत: इस युग में एकमात्र व्यावहारिक यज्ञ संकीर्तन यज्ञ अर्थात् चौबीसों घंटे हरे कृष्ण मंत्र का कीर्तन करना है।
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