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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  4.13.29 
मैत्रेय उवाच
अङ्गो द्विजवच: श्रुत्वा यजमान: सुदुर्मना: ।
तत्प्रष्टुं व्यसृजद्वाचं सदस्यांस्तदनुज्ञया ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने उत्तर दिया; अङ्ग:—राजा अंग; द्विज-वच:—ब्राह्मणों के वचन; श्रुत्वा—सुनकर; यजमान:—यज्ञकर्ता; सुदुर्मना:—मन में अत्यन्त खिन्न; तत्—उसके सम्बध में; प्रष्टुम्—पूछने के उद्देश्य से; व्यसृजत् वाचम्—वह बोला; सदस्यान्— पुरोहितों से; तत्—उनकी; अनुज्ञया—अनुमति से ।.
 
अनुवाद
 
 मैत्रेय ने बतलाया कि पुरोहितों के इस कथन को सुनकर राजा अंग अत्यधिक खिन्न हो उठा। तब उसने पुरोहितों से कुछ कहने की अनुमति माँगी और यज्ञस्थल में उपस्थित समस्त पुरोहितों से उसने पूछा।
 
 
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