नागच्छन्त्याहुता देवा न गृह्णन्ति ग्रहानिह ।
सदसस्पतयो ब्रूत किमवद्यं मया कृतम् ॥ ३० ॥
शब्दार्थ
न—नहीं; आगच्छन्ति—आ रहे हैं; आहुता:—आमंत्रित किये जाने पर; देवा:—देवगण; न—नहीं; गृह्णन्ति—स्वीकार कर रहे हैं; ग्रहान्—भाग; इह—इस यज्ञ में; सदस:-पतय:—हे पुरोहितो; ब्रूत—कृपया बताएँ; किम्—क्या; अवद्यम्—अपराध; मया—मेरे द्वारा; कृतम्—किया गया ।.
अनुवाद
राजा अंग ने पुरोहित वर्ग को सम्बोधित करते हुए पूछा : हे पुरोहितो, आप कृपा करके बताएँ कि मुझसे कौन सा अपराध हुआ है। आमंत्रित होने पर भी देवता न तो यज्ञ में सम्मिलित हो रहे हैं और न अपना भाग ग्रहण कर रहे हैं।
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