प्रधान पुरोहित ने कहा : हे राजन्, हमें तो आपके इस जीवन में आप के मन से किया गया भी कोई भी पापकर्म नहीं दिखता, अत: आप तनिक भी अपराधी नहीं हैं। किन्तु हमें दिखता है कि आपने पूर्वजन्म में पापकर्म किये हैं जिनके कारण समस्त गुणों के होते हुए भी आप पुत्रहीन हैं।
तात्पर्य
विवाह करने का उद्देश्य पुत्र उत्पन्न करना होता है, क्योंकि पिता तथा पूर्वज यदि नारकीय बद्धजीवन में पड़े हो उससे उबारने के लिए पुत्र अनिवार्य है। इसीलिए चाणक्य पण्डित ने कहा है— पुत्रहीनं गृहं शून्यम्—पुत्र के बिना विवाहित
जीवन निन्दनीय है। राजा अंग अत्यन्त पवित्र राजा थे, किन्तु अपने पूर्व पापकर्मों के कारण उन्हें पुत्र प्राप्त नहीं हुआ। अत: यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि किसी के पुत्र उत्पन्न नहीं होता तो यह उसके पूर्व पापमय जीवन का फल है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥