जब समस्त यज्ञों के भोक्ता हरि को पुत्र की कामना पूरी करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा, तो सभी देवता उनके साथ आएँगे और अपना-अपना यज्ञ-भाग ग्रहण करेंगे।
तात्पर्य
जब भी कोई यज्ञ किया जाता है, तो उसका उद्देश्य समस्त यज्ञों के भोक्ता विष्णु को प्रसन्न करना होता है और जब वे यज्ञस्थल में आने के लिए राजी हो जाते हैं, तो सभी देवता स्वत: अपने स्वामी का अनुगमन करते हैं और ऐसे यज्ञों में उनका भाग उन्हें मिलता है। कहने का तात्पर्य यह है कि यज्ञ देवताओं को नहीं, वरन् भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के निमित्त किये जाते हैं।
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