हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  4.13.39 
स बाल एव पुरुषो मातामहमनुव्रत: ।
अधर्मांशोद्भवं मृत्युं तेनाभवदधार्मिक: ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह; बाल:—बालक; एव—निश्चय ही; पुरुष:—नर; माता-महम्—नाना; अनुव्रत:—पालक, अनुगामी; अधर्म—अधर्म का; अंश—एक अंश से; उद्भवम्—प्रकट, अवतीर्ण; मृत्युम्—मृत्यु; तेन—इससे; अभवत्—हुआ; अधार्मिक:—धर्म को न माननेवाला ।.
 
अनुवाद
 
 वह बालक अंशत: अधर्म के वंश में उत्पन्न था। उसका नाना साक्षात् मृत्यु था और वह बालक उसका अनुगामी बना और अत्यन्त अधार्मिक व्यक्ति बन गया।
 
तात्पर्य
 बालक की माता सुनीथा साक्षात् मृत्यु की पुत्री थी। सामान्यत: पुत्री को पिता के गुण प्राप्त होते हैं और पुत्र को माता के। अत: इस नियमानुसार राजा अंग का पुत्र अपने नाना का अनुगामी हुआ। स्मृति शास्त्र के अनुसार बालक साधारणत: अपने मामा के घर के नियमों का अनुगामी होता है।

नराणां मातुलकर्म का अर्थ है कि बालक साधारण रूप से अपने मामा की तरह होगा। यदि मातृकुल भ्रष्ट या पापी है, तो बालक भी, भले ही उत्तम पिता से उत्पन्न हो, अपने मातृकुल्य का शिकार हो जाता है। अत: वैदिक सभ्यता के अनुसार विवाह के पूर्व लडक़े तथा लडक़ी के कुलों का पूरा ब्यौरा लिया जाता है। यदि ज्योतिष गणना के अनुसार मेल सही बैठता है, तो ब्याह होता है। किन्तु कभी-कभी त्रुटि रह जाती है, जिससे परिवार छिन्न-भिन्न हो जाता है।

ऐसा प्रतीत होता है कि सुनीथा राजा अङ्ग के लिए बहुत अच्छी पत्नी न थी, क्योंकि वह साक्षात् मृत्यु की पुत्री जो थी। कभी-कभी भगवान् अपने भक्त को अभागी पत्नी दिलाते हैं जिससे पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वह अपनी पत्नी तथा परिवार से ऊब कर उनसे विरक्त हो ले और धीर-धीरे भक्ति की ओर उन्मुख हो सके। ऐसा लगता है कि भगवान् के विधान से ही पवित्र भक्त राजा अंग को सुनीथा जैसी भाग्यहीन पत्नी और बाद में वेन जैसा बुरा पुत्र प्राप्त हुआ। लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि उसे पारिवारिक बन्धन से पूर्ण मुक्ति प्राप्त हो गई और उसने भगवान् के धाम जाने के लिए अपना घर-बार छोड़ दिया।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥