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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  4.13.41 
आक्रीडे क्रीडतो बालान् वयस्यानतिदारुण: ।
प्रसह्य निरनुक्रोश: पशुमारममारयत् ॥ ४१ ॥
 
शब्दार्थ
आक्रीडे—खेल के मैदान में; क्रीडत:—खेलता हुआ; बालान्—लडक़े; वयस्यान्—अपनी उम्र के; अति-दारुण:—अत्यन्त क्रूर; प्रसह्य—बल से; निरनुक्रोश:—निर्दयतापूर्वक; पशु-मारम्—मानो पशु की हत्या कर रहा हो; अमारयत्—मारता था ।.
 
अनुवाद
 
 वह बालक ऐसा क्रूर था कि समवयस्क बालकों के साथ खेलते हुए उन्हें इतनी निर्दयता के साथ मारता मानो वे बध किये जाने वाले पशु हों।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥