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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  4.13.42 
तं विचक्ष्य खलं पुत्रं शासनैर्विविधैर्नृप: ।
यदा न शासितुं कल्पो भृशमासीत्सुदुर्मना: ॥ ४२ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उसे; विचक्ष्य—देख कर; खलम्—क्रूर; पुत्रम्—पुत्र को; शासनै:—दण्ड द्वारा; विविधै:—विविध प्रकार के; नृप:— राजा; यदा—जब; —नहीं; शासितुम्—वश में करने के लिए; कल्प:—समर्थ; भृशम्—अत्यधिक; आसीत्—हो गया; सु दुर्मना:—खिन्न ।.
 
अनुवाद
 
 अपने पुत्र वेन का क्रूर तथा निष्ठुर आचरण देख कर, राजा अंग ने उसे सुधारने के लिए तरह-तरह के दण्ड दिये, किन्तु वह उसे सन्मार्ग में न ला सका। वह इस प्रकार से अत्यधिक खिन्न रहने लगा।
 
 
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