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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  4.13.45 
कस्तं प्रजापदेशं वै मोहबन्धनमात्मन: ।
पण्डितो बहु मन्येत यदर्था: क्लेशदा गृहा: ॥ ४५ ॥
 
शब्दार्थ
क:—कौन; तम्—उसको; प्रजा-अपदेशम्—केवल नाम का पुत्र; वै—निश्चय ही; मोह—मोह का; बन्धनम्—बन्धन; आत्मन:—आत्मा के लिए; पण्डित:—बुद्धिमान पुरुष; बहु मन्येत—सम्मान करेगा; यत्-अर्था:—जिसके कारण; क्लेश दा:—कष्ट-कारक; गृहा:—घर ।.
 
अनुवाद
 
 ऐसा कौन समझदार और बुद्धिमान है, जो इस तरह का निकम्मा पुत्र चाहेगा? ऐसा पुत्र जीवात्मा के लिए मोह का बन्धनमात्र होता है और वह मनुष्य के घर को दुखी बनाता है।
 
 
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