जब यह पता चला कि राजा ने उदास होकर गृहत्याग कर दिया है, तो समस्त नागरिक, पुरोहित, मंत्री, मित्र तथा सामान्यजन अत्यन्त दुखी हुए। वे सर्वत्र उसकी खोज करने लगे जैसे कोई अनुभवहीन योगी अपने भीतर परमात्मा की खोज करता है।
तात्पर्य
यहाँ पर अनुभवहीन योगी द्वारा अपने भीतर परमात्मा की खोज करने का उदाहरण अत्यन्त शिक्षाप्रद है। परम सत्य को तीन प्रकार से जाना जाता है—निर्गुण ब्रह्म, अन्तर्यामी परमात्मा तथा भगवान्। ऐसे अनुभवहीन योगी (कुयोगिन:) चिन्तन द्वारा निर्गुण ब्रह्म तक पहुँच पाते हैं, किन्तु प्रत्येक जीवात्मा में स्थित परमात्मा को नहीं ढूँढ पाते। जब राजा ने घर छोड़ दिया तो यह निश्चित था कि वह अन्यत्र कहीं ठहरा होगा, किन्तु नागरिकों को पता न था कि उसकी खोज कैसे की जाये, इसलिए वे अनुभवहीन योगियों की तरह क्षुब्ध थे।
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