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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  4.13.49 
अलक्षयन्त: पदवीं प्रजापते-
र्हतोद्यमा: प्रत्युपसृत्य ते पुरीम् ।
ऋषीन् समेतानभिवन्द्य साश्रवो
न्यवेदयन् पौरव भर्तृविप्लवम् ॥ ४९ ॥
 
शब्दार्थ
अलक्षयन्त:—न पाकर; पदवीम्—कोई चिह्न, पता; प्रजापते:—राजा अंग का; हत-उद्यमा:—निराश होकर; प्रत्युपसृत्य— लौटकर; ते—वे नागरिक; पुरीम्—नगर को; ऋषीन्—ऋषि; समेतान्—एकत्रित; अभिवन्द्य—नमस्कार करके; स-अश्रव:— आँखों में आँसू भर कर; न्यवेदयन्—सूचित किया, निवेदन किया; पौरव—हे विदुर; भर्तृ—राजा की; विप्लवम्— अनुपस्थिति ।.
 
अनुवाद
 
 जब सर्वत्र खोज करने पर नागरिकों को राजा का कोई पता न चला तो वे अत्यधिक निराश हुए और नगर को लौट आये, जहाँ पर राजा की अनुपस्थिति के कारण देश के समस्त बड़े-बड़े ऋषि एकत्र हुए थे। अश्रुपूरित नागरिकों ने ऋषियों को नमस्कार किया और विस्तारपूर्वक बताया कि वे कहीं भी राजा को नहीं पा सके।
 
 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कन्ध के अन्तर्गत ‘ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन” नामक तेरहवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
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