श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.13.5 
यास्ता देवर्षिणा तत्र वर्णिता भगवत्कथा: ।
मह्यं शुश्रूषवे ब्रह्मन् कार्त्स्‍न्येनाचष्टुमर्हसि ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
या:—जो; ता:—वे सब; देवर्षिणा—नारद ऋषि द्वारा; तत्र—वहाँ; वर्णिता:—उल्लिखित; भगवत्-कथा:—भगवान् के कार्यकलापों से सम्बन्धित उपदेश; मह्यम्—मुझको; शुश्रूषवे—सुनने के लिए इच्छुक; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण; कार्त्स्न्येन—पूर्णत:; आचष्टुम् अर्हसि—कृपया बताइये ।.
 
अनुवाद
 
 हे ब्राह्मण, नारद ने भगवान् का किस प्रकार गुणगान किया और उस सभा में किन लीलाओं का वर्णन हुआ? मैं उन्हें सुनने का इच्छुक हूँ। कृपया विस्तार से भगवान् की उस महिमा का वर्णन कीजिये।
 
तात्पर्य
 श्रीमद्भागवत भगवान् की लीलाओं अर्थात् भगवत्-कथा का अभिलेख है। विदुर जो कुछ मैत्रेय से सुनने को उत्सुक थे, उसे हम भी पाँच हजार वर्षों के बाद सुन सकते हैं, बशर्ते कि हम अधिक उत्सुक हों।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥