मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; ध्रुवस्य—ध्रुव महाराज का; च—भी; उत्कल:—उत्कल; पुत्र:—पुत्र; पितरि—पिता के पश्चात्; प्रस्थिते—चले जाने पर; वनम्—जंगल में; सार्व-भौम—समस्त देशों सहित; श्रियम्—सम्पदा; न ऐच्छत्—इच्छा नहीं की; अधिराज—राजसी; आसनम्—सिंहासन; पितु:—पिता के ।.
अनुवाद
महामुनि मैत्रेय ने उत्तर दिया : हे विदुर, जब ध्रुव महाराज वन को चले गये तो उनके पुत्र उत्कल ने अपने पिता के वैभवपूर्ण राज सिंहासन की कोई कामना नहीं की, क्योंकि वह तो इस लोक के समस्त देशों के शासक के निमित्त था।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.