श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.14.1 
मैत्रेय उवाच
भृग्वादयस्ते मुनयो लोकानां क्षेमदर्शिन: ।
गोप्तर्यसति वै नृणां पश्यन्त: पशुसाम्यताम् ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ऋषि ने आगे कहा; भृगु-आदय:—भृगु इत्यादि; ते—वे सब; मुनय:—मुनिगण; लोकानाम्—लोगों की; क्षेम-दर्शिन:—कुशल चाहनेवाले; गोप्तरि—राजा की; असति—अनुपस्थिति में; वै—निश्चय ही; नृणाम्—समस्त लोगों का; पश्यन्त:—जानते हुए; पशु-साम्यताम्—पशुतुल्य जीवन ।.
 
अनुवाद
 
 महर्षि मैत्रेय ने आगे कहा : हे महावीर विदुर, भृगु इत्यादि ऋषि सदैव जनता के कल्याण के लिए चिन्तन करते थे। जब उन्होंने देखा कि राजा अंग की अनुपस्थिति में जनता के हितों की रक्षा करनेवाला कोई नहीं रह गया तो उनकी समझ में आया कि बिना राजा के लोग स्वतंत्र एवं असंयमी हो जाएँगे।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक में क्षेमदर्शिन: शब्द महत्त्वपूर्ण है, जिसका संदर्भ इन लोगों के लिए है जो लोग सदैव जनता की भलाई की चाह रखते हैं। भृगु की अगुवाई में समस्त ऋषि सदैव सोचते रहते थे कि ब्रह्माण्ड भर के लोगों को किस प्रकार आध्यात्मिक स्तर (आत्मपद) तक उठाया जाये। निस्सन्देह, वे प्रत्येक लोक के राजा को जीवन के इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए जनता पर शासन करने का उपदेश देते रहते थे। ऋषिगण राजाध्यक्ष अथवा राजा को सलाह देते थे और वह उनके आदेशों के अनुसार प्रजा पर शासन चलाता था। राजा अंग के लोप हो जाने पर ऋषियों के आदेशों को पालने वाला कोई न था। इससे सभी नागरिक यहाँ तक उच्छृङ्खल हो गये कि उनकी तुलना पशुओं से की जाने लगी। जैसाकि भगवद्गीता (४.१३) में वर्णन है मानव समाज को गुण तथा कर्म के अनुसार चार आश्रमों में विभक्त कर देना चाहिए। प्रत्येक समाज में बुद्धिमान वर्ग, प्रशासक वर्ग, उत्पादक वर्ग तथा श्रमिक वर्ग होना चाहिए। आधुनिक प्रजातंत्र में यह वैज्ञानिक विभाजन अस्त-व्यस्त हो गया है और शूद्रों अर्थात् श्रमिक वर्ग को मतदान द्वारा प्राशासनिक पदों के लिए चुना जाता है। जीवन के चरमलक्ष्य का ज्ञान न होने के कारण ऐसे व्यक्ति जीवन का उद्देश्य जाने बिना अपनी सनक वश नियम बनाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कोई भी सुखी नहीं है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥