ऋषिगण अपने आप में सोचने लगे कि सुनीथा के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण राजा वेन स्वभाव से अत्यन्त दुष्ट (उत्पाती) है। इस दुष्ट राजा का समर्थन करना वैसा ही है जैसे सर्प को दूध पिलाना। अब यह समस्त संकटों का कारण बन गया है।
तात्पर्य
साधु पुरुष सामान्यत: सामाजिक कार्यों एवं भौतिक जीवन से पृथक् रहते हैं। साधु पुरुषों ने राजा वेन का समर्थन इसीलिए किया था कि वह नागरिकों को चोर-उचक्कों से सुरक्षित रखेगा, किन्तु सिंहासन में बैठने के बाद वह मुनियों के कष्ट का कारण बन गया। साधु पुरुष विशेष रूप से यज्ञ करने में रुचि लेते हैं जिससे आध्यात्मिक
जीवन की ओर प्रगति हो, किन्तु वेन साधु पुरुषों की कृपा से अनुगृहीत न होकर उनका शत्रु बन गया, क्योंकि वह उन्हें सामान्य कर्तव्यों को करने से भी रोकने लगा। जो साँप केवल दूध तथा केले के बल पर पाला जाता है, वह अपने दाँतों में विष ही विष एकत्र करता है और उस क्षण की प्रतीक्षा में रहता है कि कब अपने स्वामी को काटे।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥