मुनियों ने कहा: हे राजन्, हम आपके पास सदुपदेश देने आये हैं। कृपया ध्यानपूर्वक सुनें। ऐसा करने से आपकी आयु, ऐश्वर्य, बल तथा कीर्ति बढ़ेगी।
तात्पर्य
वैदिक सभ्यता के अनुसार राजतंत्र में राजा को साधु पुरुष तथा मुनिजन सलाह देते हैं। उनकी सलाह से वह सबसे बड़ा शासक बन सकता है और उसके राज्य का प्रत्येक प्राणी सुखी, शान्त तथा सम्पन्न हो सकता है। बड़े-बड़े राजा महान् साधु पुरुषों के आदेशों को ग्रहण करने के लिए सचेष्ट रहते थे। राजा लोग बड़े-बड़े मुनियों यथा पराशर, व्यासदेव, नारद, देवल तथा असित के आदेशों को मानते थे। दूसरे शब्दों में, पहले वे साधु पुरुषों की सत्ता को स्वीकारते थे और तब अपनी राजतंत्र शक्ति का प्रयोग करते थे। दुर्भाग्यवश, कलियुग में राज्य का मुखिया साधुपुरुषों द्वारा दिये गये आदेशों का पालन नहीं करता जिससे न तो प्रजा और न ही सरकारी व्यक्ति सुखी रहते हैं। उनकी आयु घट जाती है, प्राय: हर व्यक्ति दुष्ट है तथा शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियों से विहीन होता जा रहा है। यदि इस प्रजातांत्रिक युग में जनता सुखी तथा सम्पन्न होना चाहती है, तो उन्हें चाहिए कि वे धूर्तों तथा मूर्खों को न चुनें जिनमें साधु पुरुषों के लिए कोई आदर भाव नहीं है।
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