वीर—वेन की; मातरम्—माता को; आहूय—बुलाकर; सुनीथाम्—सुनीथा नाम की; ब्रह्म-वादिन:—वेदों में पारंगत ऋषिगण; प्रकृति—मंत्रियों से; असम्मतम्—असहमत; वेनम्—वेन को; अभ्यषिञ्चन्—सिंहासन पर बैठा दिया; पतिम्—स्वामी; भुव:— विश्व का ।.
अनुवाद
तब ऋषियों ने वेन की माता रानी सुनीथा को बुलाया और उनकी अनुमति से वेन को विश्व के स्वामी के रूप में सिंहासन पर बिठा दिया। तथापि सभी मंत्री इससे असहमत थे।
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