तस्मिन्—जब वह; तुष्टे—संतुष्ट या प्रसन्न है; किम्—क्या; अप्राप्यम्—प्राप्त करना असम्भव; जगताम्—विश्व के; ईश्वर- ईश्वरे—नियन्ता के भी नियन्ता; लोका:—लोकों के वासी; सपाला:—पालकों सहित; हि—इस कारण से; एतस्मै—उसको; हरन्ति—प्रदान करते हैं; बलिम्—पूजा की सामग्री; आदृता:—अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक ।.
अनुवाद
भगवान् विश्व के नियन्ता बड़े-बड़े देवताओं द्वारा पूजित हैं। जब वे प्रसन्न हो जाते हैं, तो कुछ भी प्राप्त करना दुर्लभ नहीं रह जाता। इसीलिए सभी देवता, लोकपाल तथा उनके लोकों के निवासी भगवान् को सभी प्रकार की पूजा-सामग्री अर्पित करने में अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।
तात्पर्य
इस श्लोक में सारी वैदिक सभ्यता का सारांश दिया गया है। समस्त जीवात्माओं को, चाहे वे इस लोक के हों या अन्य लोकों के, अपने कर्तव्यों द्वारा भगवान् को प्रसन्न करना होता है। जब वे प्रसन्न हो जाते हैं, तो जीवन की समस्त आवश्यकताएँ स्वत: प्राप्त हो जाती हैं। वेदों में भी कहा गया है—एको बहूनां यो विदधाति कामान् (कठोपनिषद् २.२.१३)। वेदों से पता चलता है कि भगवान् सबकी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और हम सचमुच ही देख सकते हैं कि निम्न पशु, पक्षी तथा मधुमक्खियाँ, के पास कोई व्यवसाय या काम-धंदा नहीं होता तो भी भोजन के अभाव से वे मरते नहीं। वे प्राकृतिक ढंग से जीवित हैं और उन्हें जीवन की सारी आवश्यकताएं यथा भोजन, निद्रा, मैथुन तथा रक्षा उपलब्ध हैं।
किन्तु मानव समाज ने कृत्रिम रूप में एक नई तरह की सभ्यता को जन्म दिया है, जिसमें मनुष्य भगवान् से अपने सम्बन्ध को भूल जाता है। यहाँ तक कि आधुनिक समाज में ईश्वर की कृपा को भी लोग भूल जाते हैं। फलत: आधुनिक सभ्य मनुष्य सदैव दुखी और अभावग्रस्त रहता है। लोग नहीं जान पाते कि जीवन का चरम लक्ष्य भगवान् विष्णु के सम्पर्क में रहना है और उन्हें प्रसन्न करना है। वे भौतिकवादी जीवन-शैली को ही सब कुछ मान बैठते हैं और उसी के दास बन गये हैं। दरअसल उनके नेता उन्हें इस पथ पर चलने के लिए सदैव प्रोत्साहित करते हैं और जनता, ईश्वरी नियमों से अनजान रहने के कारण, अपने अंधे नेताओं का अनुसरण करके दुख की राह चले जाते हैं। विश्व की इस परिस्थिति को सुधारने के लिए लोगों को कृष्णभावनामृत की शिक्षा दी जानी चाहिए और वर्णाश्रम पद्धति के अनुसार कर्म करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। राज्य को चाहिए कि वह देखे कि लोग भगवान् को प्रसन्न करने में तत्पर रहते हैं। यह राज्य का मूलभूत कर्तव्य है। कृष्णभावनामृत आन्दोलन का शुभारम्भ आम जनता को भगवान् को प्रसन्न करने की सर्वोत्तम विधि अपनाने और इस प्रकार समस्त समस्याओं को हल करने के लिए आश्वस्त करने के उद्देश्य से किया गया था।
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