अवजानन्त्यमी मूढा नृपरूपिणमीश्वरम् ।
नानुविन्दन्ति ते भद्रमिह लोके परत्र च ॥ २४ ॥
शब्दार्थ
अवजानन्ति—अनादर करते हैं; अमी—जो; मूढा:—अज्ञानी होकर; नृप-रूपिणम्—राजा के रूप में; ईश्वरम्—भगवान् को; न—नहीं; अनुविन्दन्ति—अनुभव करते हैं; ते—वे; भद्रम्—सुख; इह—इस; लोके—संसार में; परत्र—मृत्यु के बाद; च— भी ।.
अनुवाद
जो लोग अज्ञानतावश उस राजा की पूजा नहीं करते जो कि वास्तव में भगवान् है, तो वे न तो इस लोक में और न परलोक में सुख का अनुभव करते हैं।
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