एवं मदान्ध उत्सिक्तो निरङ्कुश इव द्विप: ।
पर्यटन् रथमास्थाय कम्पयन्निव रोदसी ॥ ५ ॥
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; मद-अन्ध:—अधिकार के कारण अन्धा हुआ; उत्सिक्त:—घमंडी; निरङ्कुश:—उद्दंड; इव—सदृश; द्विप:— हाथी; पर्यटन्—घूमता हुआ; रथम्—रथ पर; आस्थाय—चढक़र; कम्पयन्—हिलाता हुआ; इव—निरसन्देह; रोदसी—आकाश तथा पृथ्वी ।.
अनुवाद
राजा वेन अपने ऐश्वर्य के मद से अन्धा होकर रथ पर आसीन होकर निरंकुश हाथी के समान सारे राज्य में घूमने लगा। जहाँ-जहाँ वह जाता, आकाश तथा पृथ्वी दोनों हिलने लगते।
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