श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  4.15.13 
सोऽभिषिक्तो महाराज: सुवासा: साध्वलड़्क़ृत: ।
पत्‍न्यार्चिषालड्‌क़ृतया विरेजेऽग्निरिवापर: ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
स:—राजा; अभिषिक्त:—अभिषेक हो जाने पर; महाराज:—महाराज पृथु; सु-वासा:—सुन्दर वस्त्रों से सज्जित; साधु- अलङ्कृत:—आभूषणों से अत्यधिक विभूषित; पत्न्या—अपनी पत्नी; अर्चिषा—अर्चि के साथ; अलङ्कृतया—आभूषणों से सजाकर; विरेजे—विराज रहे थे; अग्नि:—अग्नि; इव—सदृश; अपर:—दूसरा ।.
 
अनुवाद
 
 इस प्रकार वस्त्रों तथा आभूषणों से सुन्दर रूप से अलंकृत महाराज पृथु का अभिषेक किया गया और उन्हें सिंहासन पर बैठाया गया। वे सुन्दर आभूषणों से सज्जित अपनी पत्नी अर्चि के साथ, अग्नि के समान लग रहे थे।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥