श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  4.15.15 
वायुश्च वालव्यजने धर्म: कीर्तिमयीं स्रजम् ।
इन्द्र: किरीटमुत्कृष्टं दण्डं संयमनं यम: ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
वायु:—वायुदेव ने; च—भी; वाल-व्यजने—बालों के बने दो चँवर; धर्म:—धर्मराज ने; कीर्ति-मयीम्—नाम तथा यश को बढ़ानेवाले; स्रजम्—हार; इन्द्र:—स्वर्ग के राजा इन्द्र ने; किरीटम्—मुकुट; उत्कृष्टम्—अत्यन्त मूल्यवान; दण्डम्—राजदण्ड; संयमनम्—संसार पर शासन करने के लिए; यम:—मृत्यु के अधीक्षक ने ।.
 
अनुवाद
 
 वायु ने बालों से बने दो चामर, धर्म ने यश को बढ़ानेवाला पुष्पहार, स्वर्ग के राजा इन्द्र ने मूल्यवान मुकुट तथा यमराज ने विश्व पर शासन करने के लिए एक राजदण्ड प्रदान किया।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥