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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  4.15.16 
ब्रह्मा ब्रह्ममयं वर्म भारती हारमुत्तमम् ।
हरि: सुदर्शनं चक्रं तत्पत्‍न्यव्याहतां श्रियम् ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
ब्रह्मा—ब्रह्मा ने; ब्रह्म-मयम्—आत्मज्ञान से निर्मित; वर्म—कवच; भारती—विद्या की देवी ने; हारम्—हार; उत्तमम्—दिव्य; हरि:—भगवान् ने; सुदर्शनम् चक्रम्—सुदर्शन चक्र; तत्-पत्नी—उनकी पत्नी (लक्ष्मी) ने; अव्याहताम्—अविचल; श्रियम्— सुन्दरता तथा ऐश्वर्य ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माजी ने राजा पृथु को आत्मज्ञान से निर्मित कवच भेंट किया। ब्रह्मा की पत्नी भारती (सरस्वती) ने दिव्य हार दिया। भगवान् विष्णु ने सुदर्शन-चक्र दिया और उनकी पत्नी, ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी जी, ने उन्हें अविचल ऐश्वर्य प्रदान किया।
 
तात्पर्य
 सभी देवताओं ने राजा पृथु को तरह-तरह की भेंटें दीं। हरि ने, जो भगवान् के अवतार हैं और उपेन्द्र कहलाते हैं, राजा को सुदर्शन चक्र भेंट किया। स्मरण रहे कि यह सुदर्शन चक्र भगवान् कृष्ण या विष्णु के सुदर्शन चक्र जैसा नहीं है। चूँकि महाराज पृथु भगवान् के अंश-रूप थे, अत: उन्हें जो सुदर्शन चक्र भेंट में दिया गया, वह मूल सुदर्शन चक्र की आंशिक शक्ति से युक्त था।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥