ऋषिगण वैदिक ज्ञान में पारंगत थे। जब उन्होंने वेन की बाहुओं से एक स्त्री तथा पुरुष को उत्पन्न देखा, तो वे अत्यन्त प्रसन्न हुए क्योंकि वे जान गये कि यह युगल (दम्पति) भगवान् विष्णु के पूर्णांश का विस्तार है।
तात्पर्य
वैदिक ज्ञान में पारंगत ऋषियों तथा विद्वानों ने जो विधि अपनाई थी, वह पूर्ण थी। उन्होंने राजा वेन के समस्त पापों के फल को पहले बाहुक की उत्पत्ति द्वारा समाप्त कर दिया, जिसका वर्णन पिछले अध्याय में हो चुका है और फिर जब वेन का शरीर शुद्ध हो गया तो इसमें से एक स्त्री पुरुष युग्म प्रकट हुआ और ऋषिगण जान गये कि वह भगवान् विष्णु का ही विस्तार है। निस्सन्देह, यह विस्तार विष्णु-तत्त्व न था, वरन् विष्णु का ही एक शक्ति-प्राप्त विस्तार था जिसे आवेश कहते हैं।
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