हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  4.15.21 
स्तावकांस्तानभिप्रेत्य पृथुर्वैन्य: प्रतापवान् ।
मेघनिर्ह्रादया वाचा प्रहसन्निदमब्रवीत् ॥ २१ ॥
 
शब्दार्थ
स्तावकान्—स्तुति करने वाले; तान्—उन व्यक्तियों को; अभिप्रेत्य—देखकर, समझकर; पृथु:—राजा पृथु; वैन्य:—वेन का पुत्र; प्रताप-वान्—अत्यन्त शक्तिशाली; मेघ-निर्ह्रादया—मेघ-गर्जना के समान गम्भीर; वाचा—वाणी से; प्रहसन्—हँसते हुए; इदम्—यह; अब्रवीत्—बोला ।.
 
अनुवाद
 
 जब महान् शक्तिशाली वेन के पुत्र राजा पृथु ने अपने समक्ष इन सबों को देखा, तो वे उन्हें बधाई देने के लिए हँसे और मेघ-गर्जना जैसी गम्भीर वाणी में इस प्रकार बोले।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥