राजा पृथु ने आगे कहा : हे सूत आदि भक्तो, इस समय मैं अपने व्यक्तिगत गुणों के लिए अधिक प्रसिद्ध नहीं हूँ क्योंकि अभी तो मैंने ऐसा कुछ किया नहीं जिसकी तुम लोग प्रशंसा कर सको। अत: मैं बच्चों की तरह तुम लोगों से अपने कार्यों का गुणगान कैसे कराऊँ?
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कंध के अन्तर्गत “राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्या-भिषेक” नामक पन्द्रहवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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