श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  4.15.4 
अयं तु प्रथमो राज्ञां पुमान् प्रथयिता यश: ।
पृथुर्नाम महाराजो भविष्यति पृथुश्रवा: ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
अयम्—यह; तु—तब; प्रथम:—प्रथम; राज्ञाम्—राजाओं का; पुमान्—नर; प्रथयिता—विस्तार करेगा; यश:—ख्याति; पृथु:—महाराज पृथु; नाम—नामक; महा-राज:—महान् राजा; भविष्यति—होगा; पृथु-श्रवा:—व्यापक ख्याति का ।.
 
अनुवाद
 
 इन दोनों में से, जो नर है, वह अपने यश को विश्व भर में फैला सकेगा। उसका नाम पृथु होगा। निस्सन्देह, वह राजाओं में सबसे पहला राजा होगा।
 
तात्पर्य
 भगवान् के अनेक प्रकार के अवतार होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि गरुड़ (विष्णु वाहन), शिव तथा अनन्त ये सभी भगवान् के ब्रह्मरूप के शक्तिमान अवतार हैं। इसी प्रकार स्वर्ग का राजा शचीपति अर्थात् इन्द्र, भगवान् के काम-रूप के अवतार हैं। अनिरुद्ध भगवान् के मन के अवतार हैं। इसी प्रकार राजा पृथु भगवान् की शासन-शक्ति के अवतार हैं। इस प्रकार साधु पुरुषों तथा ऋषियों ने राजा पृथु के भावी कार्यों की भविष्यवाणी कर दी, जो भगवान् के अंशावतार रूप थे।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥