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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.15.5 
इयं च सुदती देवी गुणभूषणभूषणा ।
अर्चिर्नाम वरारोहा पृथुमेवावरुन्धती ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
इयम्—यह स्त्री; —तथा; सु-दती—सुन्दर दाँतों वाली; देवी—सम्पत्ति की देवी; गुण—उत्तम गुणों के कारण; भूषण— आभूषण; भूषणा—विभूषित करनेवाली; अर्चि:—अर्चि; नाम—नामक; वर-आरोहा—अत्यन्त सुन्दर; पृथुम्—राजा पृथु को; एव—निश्चय ही; अवरुन्धती—अत्यन्त आसक्त रहनेवाली ।.
 
अनुवाद
 
 सुन्दर दाँतों वाली स्त्री उत्तम गुणों से युक्त होने के कारण पहने गये आभूषणों को भी विभूषित करनेवाली होगी। उसका नाम अर्चि होगा और भविष्य में वह राजा पृथु को अपना पति स्वीकार करेगी।
 
 
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