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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  4.19.3 
यत्र यज्ञपति: साक्षाद्भगवान् हरिरीश्वर: ।
अन्वभूयत सर्वात्मा सर्वलोकगुरु: प्रभु: ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
यत्र—जहाँ; यज्ञ-पति:—समस्त यज्ञों का भोक्ता; साक्षात्—प्रत्यक्ष; भगवान्—भगवान्; हरि:—विष्णु ने; ईश्वर:—परम नियन्ता; अन्वभूयत—दर्शन दिया; सर्व-आत्मा—प्रत्येक का परमात्मा; सर्व-लोक-गुरु:—समस्त लोकों का स्वामी अथवा हर एक का शिक्षक; प्रभु:—स्वामी ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् विष्णु हर प्राणी के हृदय में परमात्मा-रूप में स्थित हैं। वे समस्त लोकों के स्वामी तथा समस्त यज्ञ-फलों के भोक्ता हैं। वे राजा पृथु द्वारा किये गये यज्ञों में साक्षात् उपस्थित थे।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक में आगत साक्षात् शब्द महत्त्वपूर्ण है। पृथु महाराज भगवान् विष्णु के शक्त्यावेश अवतार थे। वस्तुत: पृथु महाराज एक जीवात्मा थे, किन्तु उन्हें भगवान् विष्णु से विशेष शक्तियाँ प्राप्त थीं। फिर भी भगवान् विष्णु तो साक्षात् भगवान् ठहरे, अत: वे विष्णुतत्त्व कोटि में आते हैं। महाराज पृथु जीवतत्त्व की कोटि में थे। विष्णुतत्त्व ईश्वर का सूचक है, किन्तु जीवतत्त्व ईश्वर के अंश का। जब ईश्वर का अंश विशेष शक्तिसम्पन्न हो जाता है, तो वह शक्त्यावेश अवतार कहलाता है। यहाँ पर विष्णु हरिरीश्वर: के रूप में वर्णित हैं। भगवान् इतने दयालु हैं कि वे अपने भक्तों के सारे कष्टों को दूर कर देते हैं, अत: वे हरि कहलाते हैं। वे ईश्वर कहे जाते हैं, क्योंकि वे जो चाहें सो कर सकते हैं। वे परम नियन्ता हैं। परम ईश्वर पुरुषोत्तम तो भगवान् श्रीकृष्ण हैं। वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन ईश्वर अथवा परम नियन्ता के रूप में करते हैं, जब वे भगवद्गीता (१८.६६) में अपने भक्त को आश्वस्त करते हैं, “समस्त धर्मों को त्याग कर मेरी शरण में आ। मैं समस्त पापों से तेरा उद्धार कर दूँगा। तू डर मत।” यदि भक्त केवल उनकी शरण ग्रहण कर ले तो वे उसे समस्त पापकर्मों के फल से मुक्त कर देते हैं। यहाँ पर उन्हें सर्वात्मा कहा गया है, जिसका अर्थ यह है कि वे प्रत्येक जीव के हृदय में परमात्मा रूप में स्थित हैं और इसीे कारण वे सबके शिक्षक (गुरु) हैं। यदि हम भगवद्गीता में श्रीकृष्ण द्वारा दिये गये उपदेशों को ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें तो हमारे जीवन तुरन्त सार्थक हो जाँए। भगवान् श्रीकृष्ण से बढक़र मानव समाज को भला कौन शिक्षा दे सकता है?
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥