त्वया—तुम्हारे द्वारा; आहूता:—आमंत्रित; महा-बाहो—हे परम शक्तिशाली; सर्वे—सभी; एव—निश्चय ही; समागता:—एकत्र; पूजिता:—सम्मानित हुए; दान—दान से; मानाभ्याम्—सम्मान से; पितृ—पितृलोक के वासी; देव—देवता; ऋषि—ऋषिगण; मानवा:—तथा सामान्य जन ।.
अनुवाद
समस्त ऋषियों तथा ब्राह्मणों ने कहा : हे शक्तिशाली राजा, आपके आमंत्रण पर सभी वर्ग के जीवों ने इस सभा में भाग लिया है। वे पितृलोक तथा स्वर्गलोकों से आये हैं, साथ ही सामान्यजन एवं ऋषिगण भी इस सभा में उपस्थित हुए हैं। अब वे सभी आपके व्यवहार तथा आपके दान से अत्यन्त सन्तुष्ट हैं।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कन्ध के अन्तर्गत “राजा पृथु के सौ अश्वमेध यज्ञ,” नामक उन्नीसवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥