विदुर ने पूछा : जो दक्ष अपनी पुत्री के प्रति इतना स्नेहवान् था वह शीलवानों में श्रेष्ठतम भगवान् शिव के प्रति इतना ईर्ष्यालु क्यों था? उसने अपनी पुत्री सती का अनादर क्यों किया?
तात्पर्य
चतुर्थ स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में शिवजी तथा दक्ष के बीच मनमुटाव का वर्णन किया गया है, जो दक्ष द्वारा समग्र ब्रह्माण्ड की शान्ति के लिए विशाल यज्ञ के आयोजन के कारण उत्पन्न हुआ। यहाँ पर शिवजी को भद्र पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि वे किसी के प्रति द्वेषभाव नहीं रखते, वे सभी जीवों पर समभाव रखते हैं और उनमें अन्य गुण भी हैं। शिव शब्द का अर्थ है ‘सर्व मंगलमय’। कोई भी शिव का शत्रु नहीं हो सकता, क्योंकि वे इतने शान्त तथा विरक्त हैं कि अपने रहने के लिए घर भी नहीं बनाते, वरन् अपने को सांसारिक वस्तुओं से अलग रखते हुए वृक्ष के नीचे रहते हैं। शिवजी का व्यक्तित्व सर्वोत्तम शीलवान पुरुष का द्योतक है। तो फिर वही दक्ष जिसने अपनी प्रिय पुत्री को ऐसे शीलवान् व्यक्ति को समर्पित किया था, उसके प्रति इतनी शत्रुता क्यों प्रदर्शित की कि सती को अपना शरीर ही त्यागना पड़ा?
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