भगवान् शिव समग्र संसार के गुरु, शत्रुतारहित, शान्त और आत्मतुष्ट व्यक्ति हैं। वे देवताओं में सबसे महान् हैं। यह कैसे सम्भव हो सकता है कि ऐसे मंगलमय व्यक्ति के प्रति दक्ष वैरभाव रखता?
तात्पर्य
शिव को यहाँ पर चराचर-गुरु अर्थात् चर और अचर (जड-जंगम) का गुरु कहा गया है। कभी-कभी उन्हें भूतनाथ कहा जाता है, जिसका अर्थ है, “मन्द बुद्धि लोगों का आराध्य देव।” कभी-कभी भूत का अर्थ ‘प्रेत’ लगाया जाता है। शिवजी भूतों तथा असुरों को सुधारने का भार लेते हैं, दैव पुरुषों की बात ही नहीं। अत: वे मन्द बुद्धि एवं आसुरी व्यक्तियों तथा उच्चकोटि के विद्वान वैष्णवों के गुरु हैं। यह भी कहा गया है, वैष्णवानां यथा शम्भु:—शम्भु अर्थात् शिव वैष्णवों में सर्वश्रेष्ठ हैं। एक ओर वे मन्द बुद्धि असुरों के आराध्य हैं, तो दूसरी ओर वैष्णवों या भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हैं और उनका सम्प्रदाय चलता है, जिसे रुद्र-सम्प्रदाय कहते हैं। यदि वे वैर करें या कभी-कभी क्रुद्ध हों तो भी ऐसे पुरुष से द्वेष नहीं करना चाहिए। इसीलिए विदुर ने विस्मयपूर्वक पूछा कि तो फिर दक्ष ने ऐसा क्यों किया? दक्ष कोई सामान्य व्यक्ति न थे। वे प्रजापति हैं और जनसंख्या को बढ़ाने का भार उन पर है और उनकी सभी पुत्रियाँ, विशेष रूप से सती अत्यन्त सम्मान्य हैं। सती शब्द का अर्थ है “परम साध्वी।” जब कभी सतीत्व की चर्चा होती है, तो दक्ष कन्या शिव की पत्नी सती का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इसीलिए विदुर को अत्यन्त आश्चर्य हो रहा था। उन्होंने सोचा, “दक्ष इतने महान् पुरुष और सती के पिता हैं और शिवजी सबों के गुरु हैं, तो फिर उनमें इतना वैरभाव कैसे सम्भव हुआ कि अत्यन्त साध्वी देवी सती को उनके इस झगड़े के कारण अपने प्राण देने पड़े?
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.