जिस किसी ने दक्ष को सर्वश्रेष्ठ पुरुष मान कर ईर्ष्यावश भगवान् शिव का निरादर किया है, वह अल्प बुद्धिवाला है और अपने द्वैतभाव के कारण वह दिव्यज्ञान से विहीन हो जाएगा।
तात्पर्य
नन्दीश्वर का प्रथम शाप था कि जो भी दक्ष का समर्थन कर रहा है, वह अज्ञानवश अपने शरीर को ही सब कुछ समझ रहा है और चूँकि दक्ष को दिव्य ज्ञान नहीं था, अत: उसका समर्थन करने से वह भी दिव्य ज्ञान से विहीन हो जाएगा। नन्दीश्वर ने कहा कि दक्ष अन्य भौतिकतावादी व्यक्तियों की तरह अपने शरीर को ही सब कुछ मान बैठा है और सभी शारीरिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त करना चाह रहा है। उसे अपने शरीर, अपनी पत्नी, सन्तान, घर तथा अन्य ऐसी वस्तुओं में, जो आत्मा से भिन्न हैं, अत्यधिक आसक्ति है। अत: नन्दीश्वर का शाप था कि जो भी दक्ष का समर्थक होगा वह दिव्य आत्मज्ञान से विहीन हो जाएगा और इस तरह वह पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के ज्ञान से भी विमुख होगा।
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