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श्लोक 4.2.7  |
सदसस्पतिभिर्दक्षो भगवान्साधु सत्कृत: ।
अजं लोकगुरुं नत्वा निषसाद तदाज्ञया ॥ ७ ॥ |
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शब्दार्थ |
सदस:—सभा के; पतिभि:—नायकों द्वारा; दक्ष:—दक्ष; भगवान्—समस्त ऐश्वर्यों के स्वामी; साधु—ढंग से; सत्-कृत:— सम्मानित हुआ; अजम्—अजन्मा (ब्रह्मा) को; लोक-गुरुम्—जगद्गुरु; नत्वा—प्रणाम करके; निषसाद—बैठ गया; तत्- आज्ञया—उनकी (ब्रह्मा की) आज्ञा से ।. |
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अनुवाद |
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उस महती सभा के अध्यक्ष ब्रह्मा ने दक्ष का समुचित रीति से स्वागत किया। ब्रह्माजी को प्रणाम करने के पश्चात् उनकी आज्ञा पाकर दक्ष ने अपना आसन ग्रहण किया। |
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