महर्षि मैत्रेय ने विदुर से कहा : जब राजा ने अपनी नगरी में प्रवेश किया, तो उसके स्वागत के लिए नगरी को मोतियों, पुष्पहारों, सुन्दर वस्त्रों तथा सुनहरे द्वारों से सुन्दर ढंग से सजाया गया था और सारी नगरी अत्यन्त सुगन्धित धूप से सुवासित थी।
तात्पर्य
वास्तविक ऐश्वर्य तो प्राकृतिक देन से मिलता है यथा सोना, चाँदी, मोती, मणि, ताजे पुष्प, वृक्ष तथा रेशम। वैदिक सभ्यता भगवान् की इन्हीं प्राकृतिक देनों को ऐश्वर्य तथा अलकंरण
मानती है। ऐसे ऐश्वर्य से मानसिक दशा तुरन्त बदल जाती है और पूरे वातावरण का अध्यात्मीकरण हो जाता है। राजा पृथु की राजधानी ऐसे ही अमूल्य ऐश्वर्यमय अलंकरणों से सजाई गई थी।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥