अनासक्तस्य विषयान्यथार्हमुपयुञ्जत:। निर्बन्ध: कृष्ण सम्बन्धे युक्तं वैराग्यमुच्यते ॥ मुक्त पुरुष को न तो इन्द्रियतृप्ति से, न ही अन्य किसी भौतिक पदार्थ से लगाव होता है। वह समझ जाता है कि प्रत्येक वस्तु भगवान् से सम्बन्धित है और प्रत्येक वस्तु का उपयोग भगवान् की सेवा में किया जाना चाहिए। फलत: वह किसी भी वस्तु का त्याग नहीं करता। उसके लिए किसी भी वस्तु को त्यागने का प्रश्न नहीं उठता, क्योंकि परमहंस जानता है कि किस प्रकार प्रत्येक वस्तु को भगवान् की सेवा में लगाया जाए। मूलत: प्रत्येक वस्तु आध्यात्मिक है, कुछ भी भौतिक नहीं है। श्रीचैतन्य-चरितामृत (मध्य ८.२७४) में भी कहा गया है कि महाभागवत में कोई भौतिक दृष्टि नहीं होती— स्थावर-जंगम देखे, ना देखे तार मूर्ति। सर्वत्र हय निज इष्ट-देव-स्फूर्ति ॥ यद्यपि वह वृक्षों, पर्वतों तथा अन्य जीवों को यहाँ-वहाँ देखता है, किन्तु वह उन्हें परमेश्वर की सृष्टि रूप में देखता है, वह केवल स्रष्टा को देखता है, सृजित को नहीं। दूसरे शब्दों में, सृजित तथा स्रष्टा में कोई अन्तर नहीं दिखता। वह प्रत्येक वस्तु में भगवान् के दर्शन करता है। वह प्रत्येक वस्तु में श्रीकृष्ण को और श्रीकृष्ण में प्रत्येक वस्तु को पाता है। यही एकाकार है। |