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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 22: चारों कुमारों से पृथु महाराज की भेंट  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  4.22.54 
विजिताश्वं धूम्रकेशं हर्यक्षं द्रविणं वृकम् ।
सर्वेषां लोकपालानां दधारैक: पृथुर्गुणान् ॥ ५४ ॥
 
शब्दार्थ
विजिताश्वम्—विजिताश्व नामक; धूम्रकेशम्—धूम्रकेश नामक; हर्यक्षम्—हर्यक्ष नामक; द्रविणम्—द्रविण नामक; वृकम्— वृक नामक; सर्वेषाम्—सभी; लोक-पालानाम्—लोकों के लोकपालों का; दधार—स्वीकार किया; एक:—एक; पृथु:—पृथु महाराज; गुणान्—समस्त गुणों को ।.
 
अनुवाद
 
 विजिताश्व, धूम्रकेश, हर्यक्ष, द्रविण तथा वृक नामक पाँच पुत्र उत्पन्न करने के बाद भी पृथु महाराज इस लोक पर राज्य करते रहे। उन्होंने अन्य समस्त लोकों पर शासन करने वाले देवों के समस्त गुणों को आत्मसात् किया।
 
तात्पर्य
 प्रत्येक लोक का एक प्रधान देव होता है। भगवद्गीता से पता चलता है कि सूर्य का प्रधान देव विवस्वान है। इसी प्रकार चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहों के भी प्रधान देव हैं। वास्तव में अन्य समस्त लोकों के प्रधान देव सूर्य तथा चन्द्रमा के प्रधान देवों की सन्तानें हैं। इस पृथ्वी लोक में दो क्षत्रिय वंश हैं: एक सूर्य के प्रधान देव से उत्पन्न है और दूसरा चन्द्रमा के प्रधान देव से। ये वंश क्रमश: सूर्यवंश तथा चन्द्रवंश कहलाते हैं। जब इस लोक पर राजतंत्र था, तो इसका मुख्य सदस्य सूर्यवंशी था और अधीन राजा चन्द्रवंश के थे। किन्तु महाराज पृथु इतने शक्तिमान थे कि वे अन्य लोकों के प्रधान देवों के समस्त गुणों से ओतप्रोत थे।

आधुनिक युग में लोगों ने पृथ्वी से चन्द्रमा तक जाने का प्रयास किया है, किन्तु वे वहाँ किसी को भी नहीं पा सके, चन्द्रमा के प्रधान देव से मिलने की बात तो दूर रही। किन्तु वैदिक साहित्य बारम्बार कहता है कि चन्द्रमा अत्यन्त बुद्धिमान निवासियों से पूर्ण है जिनकी गणना देवताओं में की जाती है; अत: हमें हमेशा सन्देह होता रहता है कि पृथ्वी के आधुनिक विज्ञानियों ने किस प्रकार की चन्द्र-यात्रा की है!

 
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