मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; इति—इस प्रकार; अनुक्रोश-हृदय:—अत्यन्त दयालु, करुणाई; भगवान्—भगवान् ने; आह— कहा; तान्—प्रचेताओं से; शिव:—शिवजी; बद्ध-अञ्जलीन्—हाथ जोड़े खड़े हुए; राज-पुत्रान्—राजा के पुत्रों को; नारायण पर:—नारायण के भक्त, शिवजी; वच:—शब्द ।.
अनुवाद
महर्षि मैत्रेय ने आगे कहा : भगवान् नारायण के परम भक्त महापुरुष शिवजी अहैतुकी कृपावश हाथ जोड़ कर खड़े हुए राजा के पुत्रों से कहते रहे।
तात्पर्य
शिवजी स्वेच्छा से राजपुत्रों को आशीर्वाद देने और उनके हित में कुछ करने आये थे। उन्होंने स्वयं मंत्र का उच्चारण किया जिससे कि मंत्र की शक्ति बढ़ती रहे। उन्होंने राजपुत्रों को इस मंत्र को जपने का आदेश दिया। जब कोई मंत्र किसी महान् भक्त द्वारा उच्चरित होता है, तो वह अधिक शक्तिशाली हो
जाता है। यद्यपि हरे कृष्ण महामंत्र स्वयं शक्तिशाली है, किन्तु दीक्षा के समय गुरु शिष्य को मंत्र देता है, क्योंकि गुरु द्वारा उच्चरित होने से मंत्र अधिक शक्तिशाली बन जाता है। शिवजी ने राजपुत्रों से मंत्र को ध्यानपूर्वक सुनने के लिए कहा, क्योंकि मन लगाये बिना मंत्र सुनना अपराध है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥