हे कमलनयनी, तुम्हारे साथ के ग्यारह बलिष्ट अंगरक्षक और ये दस विशिष्ट सेवक कौन हैं? इन दस सेवकों के पीछे-पीछे ये स्त्रियाँ कौन हैं तथा तुम्हारे आगे-आगे चलने वाला यह सर्प कौन है?
तात्पर्य
मन के दस बलिष्ट नौकर हैं—पाँच कर्मेंन्द्रियाँ तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ। ये दसों मन की अधीक्षण में कार्य करते हैं। मन समेत ये दसों—कुल मिलकर ग्यारह—प्रबल अंगरक्षक बनते हैं। इन्द्रियों के अधीन सैकड़ों स्त्रियों को यहाँ पर ललना: कहा गया है। मन बुद्धि के अधीन रहकर कार्य करता है और ये दसों इन्द्रियाँ मन के अधीन रहती हैं और दस इन्द्रियों के अधीन असंख्य इच्छाएँ हैं जिनकी पूर्ति होनी है। किन्तु ये सब प्राण पर आश्रित हैं जिसे यहाँ सर्प के रूप में प्रदर्शित किया गया है। जब तक प्राण रहता है तभी तक मन कार्य करता है और मन के अधीन सारी इन्द्रियाँ
काम करती हैं और इन इन्दियों से अनेक भौतिक इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं। वास्तव में पुरञ्जन नामक जीव इतने सारे ताम-झाम से अत्यधिक उलझन में रहता है। यह सारा ताम-झाम अनेक प्रकार की चिन्ताओं को जन्म देता है, किन्तु जो व्यक्ति श्रीभगवान् की शरण में चला जाता है और सारा कार्य उन्हीं पर छोड़ देता है, वह ऐसी सारी चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है। अत: प्रह्लाद महाराज क्षणिक भौतिक जीवन को स्वीकार करने वाले व्यक्ति को भगवान् की शरण ग्रहण करने और सारी चिन्ताओं से मुक्त होने के लिए तथा कथित जिम्मेदारियों को छोड़ देने का उपदेश देते हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥