क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत। क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम ॥ “हे अर्जुन! तुम जान लो कि मैं समस्त देहों को जाननेवाला हूँ। इस देह तथा इसके स्वामी को जानना ही ज्ञान है। ऐसा मेरा मत है।” शरीर को क्षेत्र माना जाता है और आत्मा (जीव) को उस क्षेत्र में कार्य करने वाला। किन्तु एक अन्य आत्मा भी है, जिसे परमात्मा कहते हैं, जो आत्मा के साथ रहकर केवल साक्षी बना रहता है। आत्मा (जीव) कार्य करता है और शरीर के फलों का भोग करता है, किन्तु परमात्मा केवल आत्मा के कार्यों को देखता हैं किन्तु कर्म-फलों का भोग नहीं करता। परमात्मा प्रत्येक कार्यक्षेत्र में वर्तमान है, किन्तु आत्मा तो केवल अपने सीमित शरीर में रहता है। राजा मलयध्वज को ज्ञान की यह पूर्णता प्राप्त थी, वह आत्मा, परमात्मा तथा भौतिक देह में अन्तर करने में सक्षम था। |