गर्भे—गर्भ में; बाल्ये—बाल्यकाल में; अपि—भी; अपौष्कल्यात्—अविकसित होने के कारण; एकादश—दस इन्द्रियाँ तथा मन; विधम्—के रूप में; तदा—उस समय; लिङ्गम्—सूक्ष्म शरीर अथवा मिथ्या अहंकार; न—नहीं; दृश्यते—दिखाई पड़ता है; यून:—तरुण का; कुह्वाम्—अमावस्या में; चन्द्रमस:—चन्द्रमा; यथा—जिस तरह ।.
अनुवाद
जब मनुष्य तरुण होता है, तो दसों इन्द्रियाँ तथा मन पूरी तरह दिखाई पड़ते हैं, किन्तु माता के गर्भ या बाल्यकाल में इन्द्रियाँ तथा मन उसी तरह ढके रहते हैं जिस तरह अमावस्या की रात्रि के अंधकार से पूर्ण-चन्द्रमा ढका रहता है।
तात्पर्य
जब जीव गर्भ में रहता है, तो उसका स्थूल शरीर, दस इन्द्रियाँ तथा मन पूर्णत: विकसित नहीं होते। तब इन्द्रियों के विषय उसे विचलित नहीं कर पाते। किसी स्वप्न में एक तरुण व्यक्ति तरुणी को उपस्थित देख सकता है, क्योंकि तब इन्द्रियाँ सक्रिय होती हैं। किन्तु एक शिशु या बालक अपने स्वप्नों में तरुणी को नहीं देखेगा। युवावस्था में, स्वप्न में भी इन्द्रियाँ सक्रिय रहती हैं, अत: तरुणी के उपस्थित न होने पर भी इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं और वीर्य-स्खलन हो सकता है। सूक्ष्म तथा स्थूल शरीरों के कार्य इस बात पर निर्भर करते हैं कि परिस्थितियाँ
कितनी विकसित हैं। यहाँ पर चन्द्रमा का उदाहरण अत्यन्त उपयुक्त है। अमावस्या की रात्रि में, यद्यपि पूर्ण चमकता हुआ चन्द्रमा उपस्थित रहता है, किन्तु परिस्थितियों के कारण वह उपस्थित नहीं जान पड़ता। इसी प्रकार जीव की इन्द्रियाँ विद्यमान होती हैं, किन्तु वे तभी सक्रिय होती हैं जब स्थूल तथा सूक्ष्म शरीर विकसित हो जाते हैं। जब तक स्थूल शरीर की इन्द्रियाँ विकसित नहीं हो जातीं तब तक वे सूक्ष्म शरीर पर कोई क्रिया नहीं करतीं। इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर में इच्छाओं के अभाव के कारण स्थूल शरीर का विकास नहीं हो पाता।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥