श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 3: श्रीशिव तथा सती का संवाद  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  4.3.12 
पश्य प्रयान्तीरभवान्ययोषितो
ऽप्यलड़्क़ृता: कान्तसखा वरूथश: ।
यासां व्रजद्‌भि: शितिकण्ठ मण्डितं
नभो विमानै: कलहंसपाण्डुभि: ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
पश्य—देखो तो; प्रयान्ती:—जाती हुई; अभव—हे अजन्मा; अन्य-योषित:—अन्य स्त्रियाँ; अपि—निश्चय ही; अलङ्कृता:— सजी-धजी; कान्त-सखा:—अपने पतियों तथा मित्रों सहित; वरूथश:—झुंड की झुंड; यासाम्—जिनके; व्रजद्भि:—उड़ते हुए; शिति-कण्ठ—हे नीलकण्ठ; मण्डितम्—सुशोभित; नभ:—आकाश; विमानै:—विमानों से; कल-हंस—हंस; पाण्डुभि:— श्वेत ।.
 
अनुवाद
 
 हे अजमा हे नीलकण्ठ, न केवल मेरे सम्बन्धी वरन् अन्य स्त्रियाँ भी अच्छे अच्छे वस्त्र पहने और आभूषणों से अलंकृत होकर अपने पतियों तथा मित्रों के साथ जा रही हैं। जरा देखो तो कि उनके श्वेत विमानों के झुण्डों ने सारे आकाश को किस प्रकार सुशोभित कर रखा है!
 
तात्पर्य
 यहाँ पर शिवजी को अभव कहकर सम्बोधित किया गया है, जिसका अर्थ है, “जिसका कभी जन्म नहीं हुआ” यद्यपि सामान्यत: उन्हें भव अर्थात् “जिसका जन्म हुआ है” कहा जाता है। रुद्र अथवा शिव वास्तव में ब्रह्मा के भुकटियों के मध्य से उत्पन्न हैं। ब्रह्मा स्वयम्भू कहलाते हैं, क्योंकि वे किसी मनुष्य से उत्पन्न न होकर सीधे विष्णु के नाभि-कमल से जन्मे हैं। जब यहाँ पर शिव को अभव कहा गया है, तो उसका यह अर्थ लगाना चाहिए, “जिसने भौतिक कष्टों का कभी अनुभव नहीं किया।” सती अपने पति को यह बताना चाह रही थी कि जो उसके पिता के सम्बन्धी नहीं थे वे भी जा रहे थे, फिर वह स्वयं तो उनसे घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित थी। शिव को यहाँ नीलकण्ठ कहा गया है। शिव ने विष का समुद्र पी लिया था और वे उसे गले (कण्ठ) में ही रखे रहे, पेट में नहीं जाने दिया जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया। तभी से वे नीलकण्ठ कहलाने लगे। शिव ने विष का समुद्र परोपकार हेतु पिया था। जब देवों तथा असुरों ने समुद्र का मन्थन किया, तो सबसे पहले विष प्रकट हुआ, अत: यह सोच कर कि विषैले समुद्र से अन्य अल्पज्ञ लोग प्रभावित होंगे शिवजी ने सारा समुद्र जल पी लिया। कहने का तात्पर्य यह कि जब अन्यों के लाभ के लिए वे इतना विष (गरल) पान कर सकते थे तो जब उनकी पत्नी अपने पिता के घर जाने की प्रार्थना कर रही है, तो भले ही वे अनुमति न देना चाह रहे हों, किन्तु अपनी महान् दयालुतावश उन्हें ऐसा करना ही चाहिए था।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥